Sunday, April 22, 2012

"काश"

कि वही तो नहीं होता
जो चाहते हैं हम
चाहते तो बहुत कुछ है
पर वैसे होते नहीं  हम
मेरी भी चाहत यही है कि
वेद निहित जीवन जियूं
उठते ही धरती को
दिशाओं को आकाश को
नमन करूँ
लम्बी लम्बी साँस भरते हुवे
संकल्प लूँ
कि जीवन हो तो
फिर जीवन ही हो
साक्षी भाव को
सखा बना लूँ
खुद बहक भी जाऊँ
तो उसे जगा लूँ
एक कर्मयोगी की तरह
निश्काम भाव से
लगी रहूँ
काम करूं बस काम करूं
शिकायत न करूँ सचेत रहूं
अगले दिन पुनर्जन्म
की सुबह तो होगी ही
अन्यथा ना लेना इसे
आज इतनी  थक जाऊँ मैं
कि तकिया पर सर
रखते ही मर जाऊं मैं
कि तकिया पर सर
रखते ही सो जाऊं मैं
नींद की सी शांति
जहाँ चाहत नहीं होती
चाहत --->
कि वही तो नहीं होता
जो चाहते हैं हम
चाहते तो बहुत कुछ है
पर वैसे होते नहीं हम ।

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