परिस्थितियों
के गुलाम
परिस्थितियां
गुलाम किसी की
कौन जाने
कितना कुछ सच
कितना झूठ
का अंबार
कौन जाने
जानने की
तुष्टि उभरती
नहीं आँखों में
नींद सुला
देती है
सब कुछ
बस आवाज
सोती नही
स्वप्न में भी
साकार
दो तरफा
संसार
बीच की
दीवार
कहीं मैं
तो नहीं
कौन जाने।
के गुलाम
परिस्थितियां
गुलाम किसी की
कौन जाने
कितना कुछ सच
कितना झूठ
का अंबार
कौन जाने
जानने की
तुष्टि उभरती
नहीं आँखों में
नींद सुला
देती है
सब कुछ
बस आवाज
सोती नही
स्वप्न में भी
साकार
दो तरफा
संसार
बीच की
दीवार
कहीं मैं
तो नहीं
कौन जाने।
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