Tuesday, January 19, 2010

"मरीचिका"

शिकंजे नहीं
खुद बिन डाले
जाले
हर तरफ
हर ओर
बस
मरुस्थली शोर
समझौता
हवाओं से
न हो
सका
बालू का
मन ढह
गया
दूर दूर
तक तोड़
सीमा
सीमाहीन
भटक गया
सीमा ही
के लिये ।

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