Wednesday, December 16, 2009

समकालीन
परिस्थितियों में

एक
सफल बनाम सुघड़
आदमी का
जो खाका
बनाता है

कार्टूनिस्ट

उसमें
जिंदगी के
शॉर्ट कटों
से परहेज
रखने वाले

एक
आम आदमी
की झलक
नहीं होती

क्योंकी
उसके लिये
अपारदर्शी
होना
बेहद
जरूरी है

जिंदगी का
एक
मौलिक रंग
एक
मौलिक स्वाद
रखना
अपराध है

शक्कर की एक
मोटी परत
लाज़मी है

सिक्कों के वजन
खनखनाहट
को पहचानना
शहूर है

अति संवेदनशील
होना
असभ्यता की
निशानी है

सभी कुछ
जानता है
कार्टूनिस्ट

तभी
दूर रखता है
उसे
 

कहीं सबक भी
देता है
कहीं
सजा भी

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